भारत का संविधान .-------Constitution of India

                                        भारत का संविधान 

                                                        Constitution of India
  
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भारत का संविधान 




संविधान की शुरुआत 


 1773 ई. का रेग्‍यूलेटिंग एक्ट:


 इस एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसिडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें
                                 गवर्नर जनरल 
और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते

कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया.


बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का जनरल नियुक्त किया गया.

 कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई.


 1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट: 


इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ-

 कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए

 बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर- राजनीतिक मामलों के लिए.


⇒ 1793 ई. का चार्टर अधिनियम: 


इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्‍यवस्‍था की गई.

 1813 ई. का चार्टर अधिनियम: 

कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया. 

 कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया. लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा.

  कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया.

 1833 ई. का चार्टर अधिनियम:

कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए. 

अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया. 

 बंगालग के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा. 

 भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.


⇒ 1853 ई. का चार्टर अधिनियम: 


इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गई.


⇒ 1858 ई. का चार्टर अधिनियम: 


 भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों सौंपा गया.

  भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गई. 

 15 सदस्यों की भारत-परिषद का सृजन हुआ.

 भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया.


⇒ 1861 ई. का भारत शासन अधिनियम: 


गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया, 

 विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, 

गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई. 

 गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.


⇒. 1892 ई. का भारत शासन अधिनियम: 


अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, 

इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई.

. 1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले -मिंटो सुधार] -

 पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया.

 भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई.

केंद्रीय और प्रांतीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के 
विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला.

प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गई.


⇒. 1919 ई० का भारत शासन अधिनियम मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार -


केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था. केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा 41 मनोनीत होते थे. इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था. दोनों सदनों के अधिकार समान थे. इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था.



⇒ हस्तांतरित विषय -

 शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता.

सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उघोग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि.

आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था.

द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया.

 भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है.
 इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया.. 1935 ई० का भारत शासन अधिनियम: 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्‍ट थे. इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

 अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया.

 प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्‍वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया.

 केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था
.
 संघीय न्‍यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी
.
 ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.

 भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.

सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों - भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया.

 इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था.


 इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया.






 संविधान सभा का गठन  

 संविधान सभा का पहला अप्रत्यक्ष संकेत 1895 में तिलक के स्वराज विधेयक से मिलता है।

 पहला अधिवेशन 9 दिसम्बर 1946 को हुआ था। मुस्लिम लीग ने इसका बहिष्कार किया।
 3जून 1947 के विभाजन योजना के द्वारा पाकिस्तान के लिए पृथक संविधान सभा का गठन किया गया।
 पश्चिम बंगाल व पूर्वी पंजाब के प्रान्तों मे नए निर्वाचन किए गए।
 पुनर्गठित संविधान सभा में 324 सदस्यों की संख्या निश्चित की गयी । जब 31 अकटूबर 1947 को संविधान सभा बुलायी गयी तब उसमें 299 सदस्य थे, जिसमे 70 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
 हैदराबाद रियासत के सदस्य संविधान सभा में शामिल नही हुऐ ,
 9 दिसम्बर 1946 मे संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली संसद् भवन की केन्द्रीय कक्ष में हुई थी इसमें अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा चुने गए।
 11 दिसम्बर 1946 डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया।
 13दिसम्बर 1946 संविधान सभा में नहेरू ने उदेश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा उदेश्य प्रस्ताव स्वीकृत हुआ।
29 अगस्त 1947 को भीम राव अम्बेडकर की अध्यक्षता मे प्रारूप समिति का गठन हुआ।
 श्री बी.एन. राव ( बेनेगल नरसिंह राव जो एक न्यायधीश थे ) संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार थे।

 कैबिनेट मिशन योजन के अन्तर्गत संविधान सभा के चुनाव के परिणाम

 काँग्रेस   208
 मुस्लिम लीग 73
 यूनियनिस्ट 1
 यूनियनिस्ट मुस्लिम 1
 यूनियनिस्ट अनुसूचित जातियाँ 1
 कृषक प्रजा पार्टी 1
अनसूचित जाति संघ 1
 सिख 1
 कम्युनिस्ट पार्टी 1
 स्वतन्त्र  8
 संविधान सभा का प्रथम वाचन 4 नवम्बर 1947 को द्वितीय वाचन 15-16नवम्बर 1948 तीसरा वाचन 17-26 नवम्बर 1949 को सम्पन्न हुआ।
 2 वर्ष 11 माह 18 दिन संविधान निर्माण में लगे। 65 लाख ₹ व्यय हुआ।
 26 नवम्बर 1949 को संविधान अंगीकृत किया गया । इस दिन संविधान पर 284 सदस्यों के हस्ताक्षर हुए थे।
 राष्ट्रीय ध्वज 22जुलाई 1947 को स्वीकार किया गया।
 राष्ट्रीय गान 24 जनवरी को स्वीकार किया गया ।
                              केंद्रीय मंत्री मंडल
 जवाहरलाल नहेरू  कार्यकारी परिषद् के उपाध्यक्ष
 वल्लभ भाई पटेल   गृह सूचना प्रसारण
 बलदेव सिहं             रक्षामन्त्री
 सी राजगोपालचारी   शिक्षा मन्त्री
 राजेन्द्र प्रसाद ,         कृषि एवं खाद्य
 आसफअली           रेलमन्त्री
 जगजीवनराम        श्रम मन्त्री
 जॉन मथाई            उद्योग एवं आपूर्ति मन्त्री
 जोगेन्द्र नाथ मण्डल   विधि मन्त्री
 आई-आई चुन्दरीगर  वाणिज्य मन्त्री
 अली खान                स्वस्थ्य मन्त्री
 मावलंकर                 अंतरिम सभाध्यक्ष

     संविधान सभा की विभिन्न समितियाँ


 नियम समिति           डा. राजेन्द्र प्रसाद
 संचालन समिति-       डा. राजेन्द्र प्रसाद
 रियासत समिति       डा. राजेन्द्र प्रसाद
 प्रारूप समिति         डा़.भीमराव अम्बेडकर
 संघ समिति               जबाहर लाल नहेरू
 संघ संविधान समिति जबाहर लाल नहेरू
 प्रान्तीय संविधान समिति   सरदार वल्लभ भाई पटेल
 सलाह कार समिति  सरदार वल्लभ भाई पटेल
 मूल अधिकार उप समिति  जे.बी कृपलानी
 अल्पसंख्यक उप समिति और झण्डा समिति   जे.बी कृपलानी

                                   संविधान की अनुसूचियाँ 

प्रथम अनुसूची: 

 इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (29 राज्य) एवं संघ शासित (सात) क्षेत्रों का उल्लेख है.
  संविधान के 62वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है.
  2 जून 2014 को आंध्र प्रदेश से पृथक तेलंगाना राज्‍य बनाया गया. इससे पहले राज्‍यों की संख्‍या 28 थी.

द्वितीय अनुसूची:

  इसमें भारत राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति, विधान सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन का उल्लेख किया गया है.
तृतीय अनुसूची:

  इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है.

चौथी अनुसूची:

  इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्य सभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है.
पांचवीं अनुसूची:
  इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है.
छठी अनुसूची: 
 इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है.
सांतवी अनुसूची: 
 इसमें केंद्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बंटवारे के बारे में बताया गया है, इसके अन्तगर्त तीन सूचियाँ है- संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची:
  संघ सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर केंद्र सरकार कानून बनाती है. संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 98 विषय हैं.
  राज्य सूची: इस सूची में दिए गए विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है. राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केंद्र सरकार भी कानून बना सकती है. संविधान के लागू होने के समय इसके अन्‍तर्गत 66 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 62 विषय हैं.
  समवर्ती सूची: इसके अन्‍तर्गत दिए गए विषय पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं. परंतु कानून के विषय समान होने पर केंद्र सरकार केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है. राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केंद्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है. संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे, वर्तमान समय में इसमें 52 विषय हैं.
आठवीं अनुसूची:
  इसमें भारत की 22 भाषाओँ का उल्लेख किया गया है. मूल रूप से आंठवीं अनुसूची में 14 भाषाएं थीं, 1967 ई० में सिंधी को और 1992 ई० में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया. 2004 ई० में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को आंठवीं अनुसूची में शामिल किया गया.
नौवीं अनुसूची:
  संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 के द्वारा जोड़ी गई. इसके अंतर्गत राज्य द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है. इन अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं.
 अब तक यह मान्यता थी कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती. 11 जनवरी, 2007 के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है.
दसवीं अनुसूची:
  यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है.
ग्यारहवीं अनुसूची:
  यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है. इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किए गए हैं.
बारहवीं अनुसूची:
  यह अनुसूची 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिय 18 विषय प्रदान किए गए हैं.

संविधान के महत्वपूर्ण भाग 

नागरिकता  5  11 तक 


अनुच्‍छेद 5 : संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता।
अनुच्‍छेद 6 : पाकिस्‍तान से भारत को प्रवजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
अनुच्‍छेद 7 : पाकिस्‍तान को प्रवजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
अनुच्‍छेद 8 : भारत से बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार।
अनुच्‍छेद 9 : विदेशी राज्‍य की नागरिकता स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न रह जाना।
अनुच्‍छेद 10 : नागरिकता के अधिकारों का बने रहना।
अनुच्‍छेद 11 : संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना।

 मूल अधिकार      


अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता- इसका अर्थ यह है कि राज्य सही व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से उन्‍हें लागू करेगा.

अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव का निषेद- राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म-स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा.

अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता- राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी. अपवाद- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग.

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत- अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इससे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है.

अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत- सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी. भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना  राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है.

2. स्वतंत्रता का अधिकार:

अनुच्छेद 19- मूल संविधान में 7 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था, अब सिर्फ 6 हैं:
19 (a) बोलने की स्वतंत्रता.
19 (b) शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता.
19 (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता.
19 (d) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता.
19 (e) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता. (अपवाद जम्मू-कश्मीर)
19 (f) संपत्ति का अधिकार.
19 (g) कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता.
नोट: प्रेस की स्वतंत्रता का वर्णन अनुच्छेद 19 (a) में ही है.
अनुच्छेद 20- अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के संबंध में संरक्षण- इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है:
(a) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी.
(b) अपराध करने के समय जो कानून है इसी के तहत सजा मिलेगी न कि पहले और और बाद में बनने वाले कानून के तहत.
(c) किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिय बाध्य नहीं किया जाएगा.
अनुच्छेद 21- प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
अनुच्छेद 21(क) राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य, विधि द्वारा अवधारित करें, निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा. ( 86वां संशोधन 2002 के द्वारा).
अनुच्छेद 22- कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध में संरक्षण: अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है:
(1) हिरासत में लेने का कारण बताना होग
(2) 24 घंटे के अंदर (आने जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा.
(3) उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा.
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध: इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषिद्ध ठहराया गया है, जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है.
नोट: जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है.
अनुच्छेद 24: बालकों के नियोजन का प्रतिषेध: 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-
अनुच्छेद 25: अंत:करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता: कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है.
अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता: व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संथाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है.
अनुच्छेद 27: राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है.
अनुच्छेद 28: राज्य विधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी. ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते.
5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधित अधिकार:
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक हितों का संरक्षण कोई अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा.
अनुच्छेद 30: शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार: कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद की शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेगी.
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार:
'संवैधानिक उपचारों का अधिकार' को डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है.
अनुच्छेद 32: इसके तहत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है. इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पांच तरह के रिट निकालने की शक्ति प्रदान की गई है जो निम्न हैं:
(a) बंदी प्रत्यक्षीकरण
(b) परमादेश
(c) प्रतिषेध लेख
(d) उत्प्रेषण
(e) अधिकार पृच्छा लेख
 
 बंदी प्रत्यक्षीकरण: 
यह उस व्यति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है. इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गए व्यक्ति को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करे जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके.
⇒ परमादेश: परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है, जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है. इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारी को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है.
 प्रतिषेध लेख: यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों तथा अर्द्ध न्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहां कार्यवाही न करें क्यूंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है.
 उत्प्रेषण: इसके दवरा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लंबित मुकदमों के न्याय निर्णयन के लिए उससे वरिष्ठ न्यायालय को भेजें.
 अधिकार पृच्छा लेख: जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारी के रूप में कार्य करने लगता है जिसके रूप में कार्य करने का उससे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है न्यायालय अधिकार-पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक वह इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता वह कार्य नहीं कर सकता है.


नीति निदेशक तत्व 


संविधान के भाग 4 को ‘राज्‍य के नीति के निदेशक तत्‍व’ शीर्षक दिया गया है। इसके अन्‍तर्गत अनुच्‍छेद 36-51 तक के अनुच्‍छेद शामिल हैं। संविधान का यह भाग आयरलैण्‍ड के संविधान से प्रभावित है। इसके माध्‍यम से संविधान राज्‍य को बताता है कि उसे सामाजिक तथा आर्थिक न्‍याय सुनिश्चित करने के लिये नैतिक दृष्टि से किन पक्षों पर बल देना चाहिये।



अनुच्‍छेद-36: परिभाषा – नीति-निदेशक तत्‍वों के संदर्भ में ‘राज्‍य‘ की परिभाषा है। इसमें भी राज्‍य का वही अर्थ है जो भाग 3 में है।
अनुच्‍छेद-37: इस भाग में दिये गए तत्‍वों का न्‍यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न होते हुए भी देश के शासन में मूलभूत माना गया है तथा विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्‍य का कर्तव्‍य होगा।
अनुच्‍छेद-38: राज्‍य लोक-कल्‍याण की अभिवृद्धि के लिये सामाजिक व्‍यवस्‍था बनाएगा।
अनुच्‍छेद-38(1): राज्‍य लोक-कल्‍याण की अभिवृद्धि के लिये सामाजिक व्‍यवस्‍था बनाएगा ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्‍याय हो सके।
अनुच्‍छेद-38(2): आय, प्रतिष्‍ठा, सुविधाओं तथा अवसरों की असमानताओं को समाप्‍त करने का प्रयास करना।
अनुच्‍छेद-39:  राज्‍य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति-निदेशक तत्‍व
  1. पुरूषों व स्‍त्रियों को आजीविका के पर्याप्‍त साधन प्राप्‍त करने का अधिकार।
  2. समाज में भौतिक संसाधनों के स्‍वामित्‍व का उचित वितरण।
  3. अर्थव्‍यवस्‍था में धन तथा उत्‍पादन के साधनों के अहितकारी केन्‍द्रीकरण का निषेध।
  4. पुरूषों व स्त्रियों के लिये समान कार्य के लिये समान वेतन।
  5. पुरूषों व स्‍त्री श्रमिकों तथा बच्‍चों को मजबूरी में आयु या शक्ति की दृष्टि से प्रतिकूल रोज़गार में जाने से बचाना।
  6. बच्‍चों को स्‍वतंत्र और गरिमा के साथ विकास का अवसर प्रदान करना और शोषण से बचना।
अनुच्‍छेद-39क: समान न्‍याय और नि:शुल्‍क विधिक सहायता   
राज्‍य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्‍याय सुलभ हो तथा अर्थिक या किसी भी अन्‍य आधार पर नागरिक न्‍याय प्राप्‍त करने से वंचित न रह जाऍं। यह विधिक सहायता नि:शुल्‍क होगी।
अनुच्‍छेद-40: ग्राम पंचायतों का गठन
राज्‍य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिये कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियॉ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्‍हे स्‍वायत्‍ता शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्‍य बनाने के लिये आवश्‍यक हों।
अनुच्‍छेद-41: कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
राज्‍य अपनी आर्थिक सामर्थ्‍य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने, शिक्षा पाने, बेकारी, बुढापा, बीमारी और नि:शक्‍तता तथा अन्‍य अनर्ह अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्‍त करने का प्रभावी उपबंध करेगा।
अनुच्‍छेद-42: काम की न्‍याय संगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध।
अनुच्‍छेद-43: कर्मकारों के लिये निर्बाह मजदूरी , शिष्ट जीवन स्तर व अवकाश की व्यवस्था करना , और कुटीर उद्धोगों को प्रोत्साहित करना ! 
अनुच्‍छेद-43क: उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों के भाग लेने के लिये उपयुक्‍त विधान बनाना।
अनुच्‍छेद-43ख: सहकारी समिमियों का उन्‍नयन      
सहकारी समितियों के स्‍वैच्छिक गठन, स्‍वायत्‍त प्रचालन , लोकतंत्रिक नियंत्रण तथा पेशेवर प्रबंधन को प्रोत्‍साहित करना ।
अनुच्‍छेद-44: नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहिता लागू करने का प्रयास करना।
अनुच्‍छेद 45: शिशुओं की देखभाल तथा 6 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों को शिक्षा देने का प्रयास करना।
अनुच्‍छेद-46: अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्‍य दुर्बल वर्गो के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि करना और हर तरह के शोषण व सामाजिक अन्‍याय से उनकी रक्षा करना।
अनुच्‍छेद-47: लोगों के पोषहार स्‍तर और जीवन स्‍तर को उॅचा करने तथा लोक स्‍वास्‍थ्‍य के सुधार करने को प्राथमिक कर्तव्‍य मानना तथा मादक पेयों व हानिकारक नशीले पदार्थों के सेवन का प्रतिषेध करने का प्रयास करना।
अनुच्‍छेद-48: कृषि और पशुपालन का संगठन
कृषि तथा पशुपालन का संगठन आधुनिक-वैज्ञानिक प्रणालियों के अनुसार करना तथा गाय-बछडों व अन्‍य दुधारू या वाहक पशुओं की नस्‍लों का परिरक्षण और सुधार करना व उनके वध का प्रतिषेध करने के लिये कदम उठाना।
अनुच्‍छेद-48क: पर्यावरण के संरक्षण व संवर्द्धन तथा वन व वन्‍य जीवों की रक्षा का प्रयास करना।
अनुच्‍छेद-49: राष्‍ट्रीय महत्‍व के स्‍मारकों, स्‍थानों और वस्‍तुओं का संरक्षण करना।
अनुच्‍छेद-50: कार्यपालिका से न्‍यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्‍छेद-51: अन्‍तर्राष्‍ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि ।



विषय निर्माता 
शैलेन्द्र सिंह ठाकुर  
सागर मध्य प्रदेश 




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